Wednesday 1 February 2012

१९ वा आदिवासी एकता सांस्कृतिक महासम्मेलन, मानगढ़,राजस्थान - वर्ष २०१२







१९ वा आदिवासी एकता सांस्कृतिक महासम्मेलन, मानगढ़ तह. आनंदपुर जिला. बांसवाडा. राजस्थान तारीख १४ और १५ जनवरी वर्ष २०१२ 
              आदिवासी एकता परिषद् हर वर्ष के १४ और १५ जनवरी को महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात इन राज्यों में आदिवासी क्षेत्र में महासम्मेलन का आयोजन बारी बारी से करती है। आदिवासी एकता परिषद् की स्थापना महाराष्ट्र के नाशिक शहर में सन १९९२ में आप. वहारुदादा सोनवने (आदिवासी समाजसेवी और साहित्यिक) आप. डॉ. गोविन्द गारे (आइ..एस.), आप.डॉ. चमुलाल राठवा, आप. कालूराम काका दोधले, आप. गजानन जी ब्राम्हने, आप. सुभाष दादा नाइक, आप. माधव बंडू मोरे, आप विरासिंग दादा पाडवी, आप. संगल्या भाई वलवी और अनेक गुमनाम विचारवादी लोगोने की आदिवासी एकता परिषद् की स्थापना की जा रही थी उसही वक्त दुनियामे पृथ्वी परिषद का आयोजन हो रहा था, जिसमे भारत के आदिवासियों के प्रतिनिधि के तोर पर आप. अशोकभाई चौधरी जो के अब आदिवासी एकता परिषद् के महासचिव है वे कर रहे थे। आदिवासी एकता परिषद् ये एक विचारधारा है जो के निम्नलिखित मुद्दोपर काम करती है
. आत्मसम्मान 
. अस्तित्व, अस्मिता.
. संस्कृति.
. स्वाभिमान.
. संस्कृति और मातृभाषा.
. प्रकृति की रक्षा.
           आदिवासी एकता परिषद् राज्यों में प्रबोधन का कार्य करती है  लगभग २५०००० कार्यकर्ता आदिवासी एकता परिषद् के साथ जुड़े हुवे है जो के साल भर अपने क्षेत्रो में प्रबोधन करते है आज इस विचारधारा से अनेक बुध्धिवादी, बुध्धिजीवी, सियासतदार, मजदूर जोड़ चुके है सभी लोग वर्ष में एक बार जमा हो और एक दुसरे के विचारोंके आदानप्रदान हेतु तथा हमने साल में जो कार्य किया है उसके पुनरवलोकन कर खामिया दूर करने हेतु, "पृथ्वी जब दिशा बदलती है तब हम आदिवासियों की दिशा बदले इस विश्वास से" वर्ष के प्रारंभ में ये महासम्मेलन आयोजित किया जाता है ये महासम्मेलन हर वर्ष आयोजित होता है, जो के इस बार राजस्थान के बांसवाडा जिले के आनंदपुरी तहसील के "मानगढ़" इस गाव में आयोजित किया था। इसी मानगढ़ में सन १९१३ में १५०० आदिवासियों को अंग्रेज सरकार ने तोफ,गोलियों से मौत के घाट उतार दिया था जलियाँ वाला हत्याकांड से ये संख्या तिगुनी है फिर भी इस इतिहास को उजागर करने की चेष्ठा किसी ने भी नहीं की, क्योंकि मरने वाले सभी "आदिवासी " थे  उस ही पवित्र जगह पर इस वर्ष का महासम्मेलन का आयोजन हुवा  आदिवासी एकता परिषद् के विविध राज्योसे लगभग १५०००० कार्यकर्ता इस कार्यक्रम में शामिल होने हेतु पधारे  जिसमे महाराष्ट्र से भूतपूर्व गृहराज्यमंत्री मानिकराव जी गावित, आप. वहारुदादा सोनवाने, आप. डोगरभाऊ बागुल थे तथा गुजरात से आप. अशोकभाई चौधरी, आप. संगल्या भाई, आप. मनोजभाई उपस्थित थे। मध्य प्रदेश से, आप. गजानन ब्राम्हने, आप. दिलीपसिंग भूरिया, आप कांतिलाल भूरिया, आप. शंकरजी तलवाडा उपथित थे। राजथान के आप. वेलाराम घोगरा, आप. महेन्द्रजीत मालवीय (राज्यमंत्री), आप. साधनाबेन मीना उपस्थित थे 
                 १४ तारीख को सर्वप्रथम "शहीद स्मारक" को वंदन कर 'मानगढ़ के शहीद अमर रहो ' इन नारों से कार्यक्रम की शुरुवात हुयी उसके बाद सभी साथियोंको जो आज हमारे बिच नहीं है उन्हें मानवंदना देने के बाद कार्यक्रम पारंपरिक रीती रिवाज से 'पात' और दाने धरती को अर्पण कर  "धरती पूजन से " हुयी धरती माता का पूजन आप. सी. के. पाडवी और आप. दरबार दादा पाडवी ने किया उसके उपरांत गुजरात के जेष्ठ विचारवादी आप. संगल्या भाई लिखित "नई भुलजी आमू नय भुलजी इयु धोरती यहाकिले नय भूलाजी" इस धरती माता वंदन गीत को आप. वहारुदादा सोनवाने, आप.दमुदादा ठाकरे ने गाया। तदुपरांत कार्यक्रम के अध्यक्ष के तोर पर .प्र. के शंकर तलवाडा का नाम घोषित किया गाया उसके पच्छात कार्यक्रम की शुरुवात हुयी सभी विचार वादियोने अपने अपने विचार प्रगट किये जो के आप को जगह की कमी के कारन संक्षिप्त में बताते है -
आप. अशोक भाई चौधरी :- आदिवासी एकता परिषद् की स्थापना करते हुवे हमें बहतु दुःख हुवा ये दुःख की ही बात है के हमे हमारे मुलभुत हक़ को प्राप्त करने के लिए संघटन बनाना पड़ा आदिवासी समाज बहुत ही सभ्य समाज है फिर भी उसकी प्रतिमा जन भुझ कर विकृत की गयी है हम निसर्ग को मानते है और उसही को पूजते है आज हम इस विचार पर गए है की सरकारे आदिवासियों के बारे में सो रही है वरना हर वर्ष अदिवासियोंके विकास के लिए जो पैसा खर्च हो रहा है उस से तो हर आदिवासी कम से कम लखपति तो बन ही जाता। फिर क्यों आज भी आदिवासी की स्थिति वैसे ही है जैसे की पहले थी आज हम ये घोषणा करते है के अगर सरकार ये देखना ही चाहती है के हम ही उन्हें जगाये तो हम गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, से पदयात्रा कर दिल्ली जाये और उन्हें जगाये
आप. वहारुदादा सोनवाने :- राजस्थान के इस भूमि में जो शहीद हुवे वो "आदिवासी" थे, मध्यप्रदेश में तथा महाराष्ट में १८५७ की लढाई खाज्या नाइक और तंटया भील ने लड़ी फिर भी आज के इतिहास की किताबो में इन का उल्लेख तक नहीं है अदिवासियोंके गौरवशाली इतिहास को क्यों दबाया गाया ? हमारी अपनी एक जीवन शैली है जो के बहुत ही गरिमा पुँर्ण है हमारी संस्कृति में स्त्री परुष समानता है हमारे समाज में स्त्री को बराबर के अधिकार है हम किसी का दमन शोषण नहीं करते फिर भी प्राथमिक स्कूलों की किताबो में लिखा था "भील चोरी करते है " इस वाक्य का उन मासूम पर क्या असर होता होंगा वे किस नजर से हमें देखते होंगे
आप. गजानन ब्राम्हने :- आदिवासियों की शिक्षा के बारे में आज बहुत ही गंभीर बाते हो रही है आज हमे व्यवस्था से उखड फेकने की शाजिसे हो रही है उसके तहत वी कक्षा तक बिना रूकावट ले जाना भी शामिल है क्योंके इस वजह से विद्यार्थियों में आलस जायेंगा फिर जब वह वी कक्षामे जायेंगा तो शायद वह ठीक से समझ भी नहीं पायेंगा और स्पर्धा से बहार हो जायेंगा क्योंकि आज कल जो माँ बाप नोकरी करते है और जिनकी माली हालत ठीक है वे तो अपने बच्चो को बहार से पढ़ा लेंगे लेकिन जो आदिवासी जिसे एक वक्त के खाने की पड़ी है वह तो स्पर्धा से बहार ही हो जायेंगा !
                कार्यक्रम के रात के सत्र में विविध विभाग से आये हुवे सांस्कृतिक मंडल के नृत्य कार्यक्रम हुवा और १५ तारीख को कार्यक्रम का अजेंडा प्रसिध्ध किया गाया जो के कार्यक्रम के बाद महामहि राष्ट्रपति जी को हर साल भेजा जाता है इस प्रकार कार्यक्रम संपन्न हुवा अगले साल गुजरात के "सगबारा" में २० वा महासम्मेलन की घोषणा के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुयी। कार्यक्रम की समाप्ति का मतलब इस साल से अगले सम्मलेन तक फिर गाव गाव में "विचारधारा" के प्रचार की शुरुवात "आप की जय "